नीतीश के टूटने पर आखिर क्यों सीरियस हो गई बीजेपी 

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The Sootr CG
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नीतीश के टूटने पर आखिर क्यों सीरियस हो गई बीजेपी 

भाजपा से टीडीपी अलग हुई। कोई बात नहीं। भाजपा से शिव सेना अलग हुई। कोई बात नहीं। भाजपा से अकाली दल अलग हुई। कोई बात नहीं। भाजपा से जेडीयू  अलग हुई। बड़ी बहस छिड़ गई है। क्यों, आखिर नीतीश कुमार में ऐसा क्या है जिससे भाजपा उनके जाने को गंभीरता से ले रही है! ऊपरी तौर पर भाजपा नेता पटना में कितना भी कूदाफांदी कर लें। सच है, सबके नीचे से जमीन खिसक गई है। सब को पता है विपक्षी एका में नीतीश अब 'जोड़न' का काम करेंगे। विपक्षी 'दही' जमा तो सियासी भोज का जायका बढ़ जाएगा। जाहिर है विपक्षी भोज भात जायकेदार होगा तो उस खेमे में भीड़ बढ़ेगी। सत्ता को परेशानी होगी।



बिहार वो सूबा है जहां से राजनीतिक विमर्श पैदा होते हैं। राजेंद्र प्रसाद, बाबू जगजीवन के समय की बात नहीं करते हैं। मामला बहुत पहले का हो जाएगा। सत्तर के दशक से ही देखें तो ऐसे कई राष्ट्रीय आंदोलन हुए जिसका अगुआ बिहार रहा। इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ चाहे जेपी मूवमेंट हो या लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोकने की घटना। सब बिहार में हुआ। नरेंद्र मोदी को पीएम चेहरा बनाये जाने की घोषणा हुई तो एनडीए में रहते हुए बिहार से नीतीश  कुमार ने बिहार से ही विरोध किया था। अकेले विरोध किया था। भाजपा के अंदर और बाहर कई अन्य विरोधी भी थे। कोई खुलकर सामने नहीं आया था। तब ऐसे किसी विरोध का कोई असर नहीं हुआ। देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को ऐतिहासिक जनादेश दिया। बार बार दिया। हर बार दिया। कालांतर में अंदर, बाहर के सभी विरोधियों को एक-एक कर निपटा दिया गया। उनका नामलेवा भी नहीं बचा। मगर, क्या कारण रहे कि तमाम जलालत झेलने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को लगातार साधा! क्योंकि वो जानते हैं कि नितीश कुमार सियासत की वो हींग हैं जिसके छौंक के बिना शाकाहार खाने का मजा नहीं। ये अलग बात है कि एमडीएच (MDH) की 10 ग्राम हींग की डिब्बी पहले 50-55 रुपये में आती थी अब वो 97 रुपये में आ रही है। मगर, जनता के लिए महंगाई लगता है कोई अब कोई मुद्दा नहीं, सो इस पर समय बर्बाद नहीं करते हैं।



आखिर क्यों नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा



मुद्दे पे आते हैं। क्या कारण रहे कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, पटना विश्ववि़द्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मांगने पर भी नहीं मिला, फिर भी नीतीश कुमार भाजपा से चिपके रहे! भाजपा ने अपने हनुमान चिराग पासवान से जदयू की लंका लगवा दी, फिर भी भाजपा से चिपके रहे! आरसीपी सिंह ने कुछ करने की कोशिश की नीतीश ने पकड़ लिया। उन्हें निपटा दिया। फिर भाजपा के साथ चिपके रह सकते थे, आखिर अब क्यों एनडीए। छोड़ यूपीए में शामिल हो गए, इस पर आज विमर्श जरूरी है।



ब विपक्षी गोलबंदी में सक्रिय रहेंगे नीतीश



नीतीश कुमार सत्ता के सियासत की आखिरी बाजीगरी खेलने मैदान में उतरे हैं। उन्हें जब दिखा ममता बनर्जी फंस चुकी है, शरद पवार की तबियत नासाज है, सोनिया गांधी की तबीयत ठीक नहीं, राहुल गांधी की स्वीकारोक्ति नहीं... विपक्षी मैदान खाली हैं, सो वो अब विपक्षी दलों के अगुआ बन कर नरेंद्र मोदी को 2024 की लोकसभा चुनाव में चुनौती देने एनडीए से अलग हुए। बिहार को तेजस्वी के हवाले कर उनका अब ज्यादातर समय विपक्षी गोलबंदी में बीतेगा। बिहार में आरजीडे-जेडीयू का सामाजिक समीकरण ऐसा है कि 2015 में दोनों मिलकर विधानसभा लड़े तो 243 सीटों में से भाजपा को केवल 54 सीटों पर समेट दिया था। तब न नरेंद्र मोदी का चेहरा काम आया, न ही किसी तरह का साम, दाम, दंड, भेद... सब फेल साबित हुआ था। अभी आरजीडे, जेडीयू, कांग्रेस मेे ही नहीं विपक्ष की सभी 7 पार्टियां साथ हैं। सभी का 2020 का वोट प्रतिशत मिला दें तो इन्हे 54 फीसदी वोट मिले थे। महागठबंधन के पास जातीय समीकरण का बेहतरीन जिताऊ फॉर्मूला है। नीतीश कुमार का चेहरा है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव की चिंता छोड़ नीतीश लोकसभा की बाजीगरी में मशगूल होंगे। एक-एक कर सभी विपक्षी नेता को साधेंगे। कांग्रेस पार्टी किसी भी तरह केंद्र की सत्ता से भाजपा को दूर करना चाहती है। इसके लिए वो नीतीश कुमार को न सिर्फ आगे करने के प्रयोग में शामिल होगी, बल्कि अन्य साथी दलों को भी नीतीश के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव हो इसके लिए तैयार करेगी।



बिहार में अब बीजेपी अकेली है नीतीश नहीं



बिहार के वोटरों ने विधानसभा और लोकसभा में अलग अलग वोटिंग पैटर्न रखा है। पैटर्न साफ बताता है कि लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार भाजपा के कंधे पर सवार होकर सीटें जीतते रहे और भाजपा नीतीश के कंधे पर सवार होकर विधानसभा में सीटें जीतते रहे। भाजपा ने नरेंद्र मोदी के रहते बिहार में नीतीश से अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़ कर अपनी हैसियत टेस्ट कर चुकी है। उसमें बहुत बदलाव की संभावना नहीं है। बिहार में अब भाजपा अकेली है, नीतीश अकेले नहीं। उनके साथ बिहार में एक मजबूत गठबंधन है।



नीतीश पर आरोपों से कैसे अलग रहेगी बीजेपी



विपक्षी एका में नीतीश कामयाब हुए तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी। बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडीसा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, पंजाब और आंध्र प्रदेश की विपक्षी सत्ता वाली राज्यों की लोकसभा सीटें मिलाकर 222 होती हैं। यही वो पिच है जिस पर नीतीश कुमार खेलेंगे। उन्हें पता है, भाजपा जिन राज्यों में भी सत्ता में है अधिकतम  पर है, उन राज्यों में जीती हुई सीटें बहाल रखने की चुनौती पहले से है। अरविंद केजरीवाल गुजरात में भाजपा को पूरी ताकत से चुनौती दे रहे हैं। हो सकता है वो कांग्रेस का वोट काटें। विपक्षी वोट बंटने से हो सकता है भाजपा फिर गुजरात जीत जाए, लेकिन बाकी भाजपा शासित राज्यों में सत्ता पुनः पाने के लिए कड़ी मशक्कत करना होगी। भाजपा के सामने समस्या ये है कि नीतीश कुमार को न भ्रष्टाचार के आरोप में घेरा जा सकता है, न परिवारवाद के आरोप में। भ्रष्टाचार के आरोप अगर कुछ खोद के निकाले भी गए उसकी जिम्मेदारी से भाजपा भी फ़ारिग नहीं हो पायेगी। आखिरकार उलटते पलटते नीतीश कुमार दो दशक तक भाजपा के ही साथ रहे हैं।



नीतीश अडिग रहे तो रण होगा बड़ा भीषण



भाजपा की अब कोशिश होगी पहले राजद नेता उप मुख्यमंत्री तेजस्वी को घेरा जाए। उसका जालबट्टा बुना जा रहा है। आईआरसीटीसी होटल के कथित घोटाले की जाँच तेज होगी। कई फाइलें और खुलेंगी। इतने आरोप सामने होंगे कि मीडिया, सोशल मीडिया में नीतीश का जीना मुहाल कर दिया जाएगा। नीतीश 2024 चुनाव से पहले फिर एनडीए में पलट गए तो ठीक, नहीं तो 'पप्पू' फॉर्मूले की तर्ज पर पलटू राम और र्सी कुमार का तमगा उन पर चस्पा कर उनकी क्रेडिबिलिटी को हंसी का पात्र बनाने की कोशिश होगी। पीएम नरेंद्र मोदी की तुलना में पलटू राम की क्या साख है? क्या पता कल पाकिस्तान के समर्थन से भारत में सरकार बना लें, कुर्सी कुमार सत्ता के लिए कुछ भी करेगा। इस तरह के मीमों के मार्फत, मीडिया विमर्श के मार्फत नीतीश कुमार को खारिज करने का भरसक प्रयास होगा! नीतीश कुमार विपक्षी खेमे में अडिग रहे तो ये तय है रण बड़ा भीषण होगा।

 


विचार मंथन बिहार की राजनीति नीतीश के टूटने का बीजेपी पर असर राजद से जुड़ने की वजह बिहार में बीजेपी को नुकसान विपक्षी दलों को एक करेंगे नीतीश politics of Bihar effect of Nitish's breakup on BJP reason for joining RJD loss to BJP in Bihar Nitish will unite opposition parties